गुरुवार, 16 अप्रैल 2009

शुभ संकेत नहीं

उच्चतम न्यायालय ने वरुण पर राष्ट्रीय सुरक्षा कानून लगाए जाने के खिलाफ सुनवाई शुरू कर दी है। मुख्य न्यायाधीष केजी बालाकृष्ण और न्यायमूर्ति पी सदाशिव की पीठ ने सुनवाई शुरू होते ही पूछा कि क्या उत्तर प्रदेश सरकार इसे लेकर वाकई गंभीर है। उसके बाद अखबारी रिपोर्ट के मुताबिक पीठ ने ये सुझाया कि अगर वरुण वचन दे दें कि आइंदा वे इस तरह के भड़काऊ भाषण नहीं देंगे तो उस पर विचार किया जाना चाहिए। आखिर वे कोई अपराधी नहीं हैं और उनके खिलाफ इतने सख्त कदम की जरूरत नहीं थी! वरुण के वकील ने वहीं पर कहा कि वे फौरन यह वचन देने को तैयार हैं। बिना अपने मुवक्किल से कोई मशविरा किए कैसे वकील मुकुल रोहतगी ने ये कह दिया, यह एक अलग सवाल है। क्या वे वरुण के उन बयानों से नावाकिफ हैं जो इस घटना के बाद उन्होंने दिए, जिनमें पीलीभीत के अपने भाषण पर कायम रहने की बात उन्होंने कही है? उनके इस भाषण की हजारों सीडियां बांटी जा रही हैं, क्या ये जानने के लिए किसी खुफिया एजेंसी की मदद की दरकार है? उच्चतम न्यायालय को वचनों और उनके हश्र के इतिहास के लिए बहुत पीछे जाने की मेहनत नहीं करनी पड़ेगी। आज से सत्रह साल पहले इसी न्यायालय में उत्तर प्रदेश के तब के मुख्यमंत्री ने वचन दिया था कि बाबरी मस्जिद के पास कारसेवा के दौरान मस्जिद को कोई नुकसान नहीं होगा। वचन भंग के चलते उस मुख्यमंत्री को कोई ऐसा दंड उच्चतम न्यायालय ने दिया हो कि आगे से इस तरह का झूठा वचन न दिया जा सके, इसकी हमें याद नहीं। उच्चतम न्यायालय के इस निष्कर्ष पर भी हमें हैरानी है कि वरुण कोई अपराधी नहीं हैं। ये अदालत में सिद्ध होना अभी बाकी है। उच्चतम न्यायालय की इस टिप्पणी से कुछ और सवाल उठ खड़े हुए हैं। मसलन, राष्ट्रीय सुरक्षा के मायने क्या हैं? जैसा घृणा भरा प्रचार वरुण के इस तथाकथित भाषण के जरिये किया गया, वह राष्ट्र को एक रखने के रास्ते में बाधा है या नहीं? उच्चतम न्यायालय को इस तरह के घृणा-प्रचार का उदाहरण राम जन्म भूमि अभियान से बेहतर और कहां मिलेगा? नफरत की उस गोलबंदी ने भारतीय समाज में जो स्थाई विभाजन पैदा किया, क्या उस पर कभी मान्नीय न्यायमूर्तिगण विचार करेंगे? क्या वे कभी इसे लेकर आत्मचिंतन करेंगे कि बाबरी मस्जिद के ध्वंस और उसके बाद हुए खूनखराबे को रोक देने में उनकी कुछ भूमिका हो सकती थी, जो नहीं निभाई जा सकी! वरुण को लेकर उच्चतम न्यायालय की उदारता अन्य लोगों को नसीब नहीं। वरुण के मुकदमे की खबर पढ़ते हुए इसी न्यायालय का एक और दृश्य याद आ गया। दिसंबर २००७ में जब विनायक सेन की जमानत याचिका लेकर सोली सोराबजी खड़े हुए तो उसे ठीक से सुनने लायक भी नहीं माना गया। ये सवाल बार-बार पूछा गया कि वे तैंतीस बार जेल में एक माओवादी नेता से मिलने क्यों गए? मानो यह विनायक के ऐसे खतरनाक अपराधी होने का पर्याप्त सुबूत है कि उन्हें जमानत न दी जाए। ये तथ्य- कि यह जानकारी मिलने पर कि पुलिस उन्हें खोज रही है, वे खुद पुलिस के पास गए, भूमिगत नहीं हुए, कि उनका सार्वजनिक जीवन एकदम खुला रहा है और उनके पक्ष में पूरी दुनिया के सभ्य शिक्षित समाज के प्रतिनिधि बोल रहे हैं- हमारी न्याय व्यवस्था पर कोई असर नहीं डाल पा रहा है। क्या इसका मतलब ये है कि न्याय-व्यवस्था राष्ट्रीय सुरक्षा की पुलिस परिभाषा को ही कमोबेश मानती है? इसी न्याय-व्यवस्था से निकले हुए लोगों से बने मानवाधिकार आयोग के जांच दल ने जिस तरह सलवा जुडुम की आलोचना करने से इनकार कर दिया, उससे भी यही संदेश मिलता है। कुछ रोज पहले एक और न्यायमूर्ति ने क्रोध भरी टिप्पणी में मसुलमानों के दाढ़ी रखने और तालिबानीकरण के बीच जो सीधा रिश्ता खोज लिया, उसने भी ये चिंता पैदा की है कि कहीं हमारी न्याय-व्यवस्था उन्हीं पूर्वग्रहों का शिकार तो नहीं, जिनका फायदा राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ ने उठाया है। वरुण आगे से ऐसे भाषण न देने को वचन दे दें और उसके आधार पर उन्हें राष्ट्रीय सुरक्षा को नुकसान पहुंचाने से जुड़े आरोपों से बरी कर दिया जाए। यह उसी पूर्वग्रह का एक दूसरा पहलू है, जिसमें कोई हिंदू कभी भी भारतीय राष्ट्र के लिए खतरनाक हो ही नहीं सकता। इसीलिए पूरे देश में मुस्लिम विरोधी घृणा की गोलबंदी करने वाले लालकृष्ण आडवाणी के साथ बैठने में भले नीतीश और उनसे भी भले नवीन पटनायक को गुरेज नहीं, खुलेआम मुसलमानों के कत्लेआम को जायज ठहराने वाले नरेंद्र मोदी को भावी प्रधानमंत्री के रूप में प्रस्तुत करने में भारतीय पूंजी के अगुओं को कोई हिचक नहीं, और उच्चतम न्यायालय को भी वरुण के पीलीभीत के भाषण और उसके बाद की घटनाओं के बाद भी उनसे अच्छे व्यवहार का वचन लेने का सुझाव मामले पर बहस शुरू होने के पहले दिन की तत्परताः ये सब धर्म निरपेक्ष भारतीय लोकतंत्र के भविष्य के लिए कोई शुभ सकेंत नहीं।
-अपूर्वानंद
(१५ अप्रैल को दिल्ली से प्रकाशित जनसत्ता के विलंबित स्तंभ में)

2 टिप्‍पणियां:

  1. aapke vichar padhe.likhte rahiye.


    m;i; zaahir
    journalist and poet
    mail...mizaahir@gmail.com
    mobile n.099289 86086

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  2. Media - My foot. Haan, kuchhek achhey log hain yahan-wahan, magar kaam to sab unhi dajjalon ke liye kar rahe hain... So, Media - My foot.

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