मंगलवार, 21 अप्रैल 2009

युवाओं को लुभा रहे हैं ईश्वर



शहीदे आजम भगत सिंह ने मैं नास्तिक क्यों हूं लिखा। दो दशक पहले तक नौजवान इसे पढ़ते थे और ईश्वर पर बहस करते थे। युवा क्रांतिकार विचार लिए दुनिया को बदल देना चाहते थे, ईश्वर को भी। बदले वक्त में ईश्वर को मानना और उसका शोआफ करना फैशन बन गया है। आज वह मजे से भूलभुलैया का गीत हरेराम हरे कृष्णा गा रहे हैं। ईश्वर नौजवानों का दोस्त बन गया है। एग्जाम में अच्छे नंबर दिलाने वाला और गर्ल फ्रैंड पटाने वाला। ईश्वर से जुड़े कई सारे प्रतीक युवा खुले तौर पर प्रयोग कर रहे हैं। आज हनुमान चालीसा जेब में रखना या पूरे सुर में पढ़ना संकोच का विषय नहीं रहा है। मजारों पर जाने को अब इंज्वाय मानने लगे हैं।
उदारीकरण की बयार से लोगों की जिंदगी में खुलापन आया है। कई मान्यताएं टूटी हैं और कई पैदा हुई हैं। बाजार ने धर्म को और धर्म ने बाजार को अपना लिया है। धार्मिक होना भी अब युवाओं के लिए छुपाने का मुद्दा नहीं रहा। युवा अब खुले तौर पर मानते हैं कि धर्म उनकी जिंदगी का हिस्सा है। पहले के नौजवान जहां ईश्वर के न होने पर घंटों बहस करते थे, आज के युवा उसके होने पर तर्कों के ढेर लगा देते हैं। कहते हैं कि कोई ताकत तो है, जो दुनिया चला रही है। आप उसे कुदरत कह लें या ईश्वर। फिलासफी की रिसर्च स्कालर अदिति को ईश्वर पर विश्वास नहीं है, लेकिन वह मानती हैं कि युवा धर्म को भी स्टेटस सिंबल की तरह इस्तेमाल करने लगे हैं। उनका कहना हैः ये बौद्धिक मामला नहीं है। ये बहाव जैसा है। इसके पीछ तर्क नहीं है।
युवाओं के जीवन में ईश्वर का दखल इस हद तक बढ़ा है कि अब वह खुलेआम गले में मजहब से जुड़े लाकेट पहनने लगे हैं। पहले ये पिछड़ेपन का प्रतीक माना जाता है। अब वह मंदिर भी खुलेआम जाते हैं। याद करें कुछ कुछ होता है फिल्म। शाहरुख खान मामा से मिलने के बहाने हर सप्ताह मंदिर जाता है। बाद में पता चलता है कि रानी को भी ईश्वर में आस्था है। फिल्म तर्क देती चलती है कि ईश्वरवादी होना छुपाने की नहीं बताने की चीज है। धर्म व्यक्तिगत मामला नहीं बल्कि प्रचार की वस्तु है। घरों में तुलसी और भगवान को दुबारा स्थापित कराने में इन फिल्मों और टीवी सीरियलों का भी बड़ा योगदान है।
रुद्राक्ष, रेकी, योग, कुंडलिनी, गीता प्रवचन, हनुमान चालीसा, साईँ बाबा, नात और धार्मिक चिन्हों वाले कपड़ों को युवा खूब पसंद कर रहे हैं। ऊं की लाकेट फैशन में है। उसे शर्ट के ऊपर रखना जरूरी है। कभी बजरंग बली युवाओं पर राज करते थे, लेकिन आज गणेश जी लोकप्रिय हैं। वजह? उनकी अनेक प्रितकृतियां उन्हें लुभाती हैं।
अल्ला रखा रहमान और सानिया मिर्जा अपने इंटरव्यू में बताते हैं कि वह पांचो वक्त की नमाज अदा करते हैं। युवाओं को ये सुनकर अच्छा लगता है। इससे उन्हें खुद के भी धार्मिक होने के लिए बल मिलता है।

2 टिप्‍पणियां:

  1. रहमान भाई, ईश्वर का अस्तित्व बहस का विषय नहीं है, हम सबको जिंदिगी में कभी न कभी उसके होने का एहसास हो ही जाता है... हाँ वो वहां नहीं मिलता अक्सर जहाँ हम उसकी तलाश करते हैं, वोह खोया ही कब था? वो तो हमारे मन की हर ईमानदार आवाज़ में सांस ले रहा है .. यक़ीन जानिए अगर आप के इस ब्लॉग में ईश्वर न होता तो शायद हम भी यहाँ का रुख़ न करते... हमने विमलेश अस्थाना जैसे वामपंथी को आख़री वक़त में मंदिर की सीढियों पर मरते देखा है.... ईश्वर हमें सही समय पर सदबुद्धि दे.. आमीन.

    "हम खुली छत के दिये कब के बुझ गए होते,
    कोई तो है जो हवाओं से बचाता है हमें."

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  2. जिसके पास स्वस्थ दिमाग है वह भगवान या इस तरह की किसी शक्ति पर विश्वास नहीं करता

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