शनिवार, 18 अप्रैल 2009

मैं घास हूँ

मैं घास हूँ
मैं आपके हर किए-धरे पर उग आऊंगा
बम फेंक दो चाहे विश्‍वविद्यालय पर
बना दो होस्‍टल को मलबे का ढेर
सुहागा फिरा दो भले ही हमारी झोपड़ियों पर
मुझे क्‍या करोगेमैं तो घास हूँ हर चीज़ पर
उग आऊंगाबंगे को ढेर कर दो संगरूर
मिटा डालोधूल में मिला दो लुधियाना ज़िला
मेरी हरियाली अपना काम करेगी...दो साल... दस साल बाद
सवारियाँ फिर किसी कंडक्‍टर से पूछेंगी
यह कौन-सी जगह है
मुझे बरनाला उतार देना
जहाँ हरे घास का जंगल है
मैं घास हूँ, मैं अपना काम करूंगा
मैं आपके हर किए-धरे पर उग आऊंगा।
-अवतार सिंह पाश

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